आँख मे होने वाली ये सबसे खतरनाक बीमारी है, जिससे आँखों मे दिखना बहुत जल्द ही कम हो जाता है, ओर कुछ समय के बाद आँखों की रोशनी छीन जाती है। यह आमतौर पर धीरे धीरे बिना किसी दर्द को महसूस किये बिना हमारी आँख को बेहद नुकसान पहुँचती है। ये बीमारी आँखों के लिए बहुत हानिकारक है। क्या है ये बीमारी, जाने इस बीमारी के बारे मे कि कैसे आँखों को नुकसान पहुँचती है।
ग्लूकोमा( काला मोतिया)
ग्लूकोमा को सामान्य भाषा में काला मोतिया भी कहा जाता है। हमारी आंख एक गुब्बारे की तरह है, जिसमें एक तरल पदार्थ भरा होता है। यह आंखों का तरल पदार्थ लगातार आंखों के अंदर बनता है और बाहर निकलता रहता है। आँखों में कुछ तंत्रिकाएँ भी होती हैं, जिनकी मदद से मस्तिष्क को संकेत प्राप्त होता है।जिससे आँखों में दबाव बढ़ जाता है ओर तंत्रिका को नुकसान पहुंचाना शुरू कर देता है और दृष्टि धीरे-धीरे कमजोर होने लगती है। अगर उसके शुरुआती लक्षणों का कोई पता नहीं चलता है, तो व्यक्ति अंधा भी हो सकता है। ग्लूकोमा की बीमारी से आंखों का बचाव किया जा सकता है। मोतियाबिंद से बचने के सभी तरीके बहुत प्रभावी हैं, लेकिन व्यक्ति को सावधान रहना चाहिए कि, यदि आपको मधुमेह है, तो ग्लूकोमा से बचने के लिए अपनी आंखों की नियमित जांच कराएं। दोनों आंखों में काले धब्बे, अधिक सिरदर्द, आंखों में दर्द, चक्कर आना, उल्टी, धुँधली दृष्टि, आंखों में दृश्य प्रकाश का अभाव होता है। अगर नियमित रूप से व्यायाम करते है, तो आंखों पर दबाव कम होता है और ग्लूकोमा जैसी बीमारी नहीं होती है। ग्लूकोमा दो प्रकार के होते है|
ओपन एंगल ग्लूकोमा/क्लोज़ एंगल ग्लूकोमा
ओपन एंगल ग्लूकोमा-जब आंखों के बढ़ते दबाव के कारण आंख की ऑप्टिक तंत्रिका क्षतिग्रस्त हो जाती है और इसकी दृष्टि खराब हो जाती है, तो इसे ओपन एंगल ग्लूकोमा कहा जाता है। इसमें धीरे-धीरे आंख कमजोर हो जाती है। इसमें सुखाने वाला क्रिस्टल ब्लॉक हो जाता है, जिससे आंखों का दबाव बढ़ जाता है।
क्लोज़ एंगल ग्लूकोमा- इस प्रकार के ग्लूकोमा में एक प्रकार का द्रव जो आँखों को पोषण देता है| जलीय हास्य का प्रवाह पूरी तरह से रुक जाता है। जिससे गंभीर सिरदर्द, आँखों का रुक जाना, आँखों का लाल होना, उल्टी और चक्कर आना, धुंधलापन की शिकायत है। यदि इस समय लापरवाही होती है, तो कोण पूरी तरह से बंद हो जाते हैं।
ग्लूकोमा के लक्षण
आंख में ग्लूकोमा एक आम समस्या है। ग्लूकोमा के शुरुआती लक्षणों की पहचान करना आमतौर पर मुश्किल होता है, लेकिन जब ये बीमारी बढ़ती है, तो आंख के ऊपर का भाग प्रभावित होने लगता है। कभी-कभी काला मोतियाबिंद बहुत गंभीर हो जाता हैं, जिससे अंधे भी हो सकते है। कभी कभी आंखों से दिखाई देना कम होने लगता, अक्सर लोग इस बीमारी पर ध्यान नहीं देते हैं। ग्लूकोमा के होने दौरान मस्तिष्क को संकेत देने वाली ऑप्टिक तंत्रिका बहुत प्रभावित होती है। और उनके कार्य की गति धीमी हो जाती हैं। इससे दूसरी आंख पर अधिक दबाव पड़ता है। यह स्थिति काफी खतरनाक है। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि ग्लूकोमा के लक्षणों को समय पर पहचान लिया जाए, क्योंकि एक बार जब यह पूरी तरह से फ़ैल जाता है, तो इसे ठीक करना बहुत मुश्किल हो जाता है। लेकिन अगर ग्लूकोमा के लक्षण को समयरहते पहचान लिया जाए, तो रोगी को नेत्रहीन होने से बचाया जा सकता है। ग्लूकोमा मे अधिकतर समय न कोई दर्द या लक्षण सही तरह से मालूम नहीं चल पता है, जब तक कि आँखों मे हानि नहीं होती है, लेकिन कुछ समय के बाद व्यक्ति अचानक इन लक्षणों का अनुभव करता है, जैसे कम दिखना, आँखों के ऊपरी सतह के आसपास दर्द , आंखों में दर्द और उल्टी जैसा लगना। यदि आपको ऐसे लक्षण समझ मे आये, तो तुरतं नेत्र रोग विशेषज्ञ से परामर्श करें ताकि आपकी आंखों का इलाज किया जा सके।
ग्लूकोमा का इलाज व उपचार
ग्लूकोमा से बचने के लिए सभी आवश्यक सावधानी बरतें। उदाहरण के लिए, आंखों में किसी भी ऑय ड्राप बूंद कोडालने से पहले अपने हाथों को अच्छी तरह से धो लें। दवा को ठंडी जगह पर ही रखें। एक बार में एक ही बूंद डालें और कम से कम दो दवाओं के बीच मे आधे घंटे का अंतर रखें।आपको समय-समय पर अपनी आंखों की जांच कराएं। 40 वर्ष की आयु के बाद आपको एक अच्छे नेत्र रोग विशेषज्ञ से अपनी आंखों की जांच कराना बहुत आवश्यक है। इसके अलावा आंखों मे बढ़ रहे दबाव और आंखों में कम रोशनी, रेटिना, ऑप्टिक तंत्रिका आदि को जाँच करना भी बहुत जरुरी है। काले मोतियाबिंद का इलाज पूरी तरह से सही समय व स्थिति पर निर्भर करता है। इसका इलाज करते समय लगातार दवाइयों का सेवन करते रहना पड़ता है। अधिकांश रोगियों का ग्लूकोमा दवाओं से जल्द ही नियंत्रण में आ जाता है। कई बार दवाएं बेअसर होने लगती हैं और तब हमें लेजर सर्जरी करनी पड़ती है। इस सर्जरी के लिए भर्ती हुए मरीज की आँखों मे चीड़ फाड़ करने की जरूरत नहीं रहती है। लेज़र सर्जरी के दौरान मरीज की आंखों को थोड़ी देर के लिए सुन्न कर दिया जाता है और फिर लेजर से मरीज का इलाज किया जाता है।
अल्ट्रा-मॉडर्न ग्लूकोमा साइक्लो जी एमपी 3 लेजर तकनीक से उपचार
ग्लूकोमा देशभर में अंधेपन का दूसरा प्रमुख कारण है। देश भर में 12 मिलियन से अधिक ग्लूकोमा के मरीज हैं। शहर व राज्य भर में बड़ी संख्या में लोग ग्लूकोमा की बीमारी से पीड़ित हैं, ग्लूकोमा का सही इलाज दवाई व ऑय ड्राप डालने से नहीं हो पाता है, सही समय पर इलाज ना किया जाए तो इसके कारण मरीज अँधा भी हो सकता है। ग्लूकोमा का सही तरह से निदान ऑय ड्रॉप्स या गोलियों से संभव नहीं होता है। डाइबिटीज, आंख के पर्दे की खून की नस बंद होने या पुतलियां बदलने से ग्लूकोमा अधिक ठोस हो जाता है। इसका ऑपरेशन करना मुश्किल हो जाता है, ग्लूकोमा का सही इलाज इस नई साइक्लो जी एमपी 3लेज़र तकनीक से संभव है। जब मरीज को दवाई व ड्राप से राहत नहीं मिलती तो मरीज के लिए ये लेजर तकनीक बहुत फायदेमंद है इसलिए डॉक्टर लेजर ट्रीटमेंट की सलाह देते है।शहर में ग्लूकोमा लेजर इलाज की सुविधा उपलब्ध है, लेकिन यह प्रक्रिया अधिक जटिल है, इसमें एक छोटा सा जोखिम भी है, जबकि ग्लूकोमा साइक्लो जी एमपी 3 लेजर उपचार की नई अत्याधुनिक आधारित मशीन है। दुनिया भर में केवल एफडीए ने 1200 मशीनों को ही लगाया गया है। यह लेजर मशीन भारत एक ही है जिसे इंदौर मे लगाया गया है।